11 मई 2011
नई दिल्ली। रबींद्रनाथ टैगोर की कृतियां जल्द ही इंटरनेट पर उपलब्ध हो जाएंगी। कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय के विद्वानों का एक समूह इस काम को अंजाम देने में जुटा है।
जादवपुर विश्वविद्यालय के अनुवाद अध्ययन एवं साहित्य विभाग के प्रोफेसर द्वय स्वपन मजूमदार और सुकांता चौधरी के नेतृत्व में चल रही डिजीटल पुस्तकालय की इस परियोजना की देख-रेख नामी विद्वान एवं लेखक शंखा घोष कर रहे हैं।
टैगोर के कविता संग्रह 'मानसी' पर काम शुरू हो चुका है। यह उनकी कविताओं और निबंधों का पहला संग्रह है, जो 1890 में प्रकाशित हुआ था। इस पुस्तक को साहित्यिक परिपक्वता में टैगोर की यात्रा का प्रारम्भ माना जाता है। 'मानसी' में टैगोर की कुछ सर्वश्रेष्ठ कविताएं शामिल हैं।
पांडुलिपियां ज्यादातर बंगाली में हैं और उन्हें पहले कंप्यूटर पर उतारा जाएगा और उसके बाद एक नए सॉफ्टवेयर की मदद से उन्हें एक विशेष पुरालेख में इंटरनेट पर अपलोड कर दिया जाएगा।
जादवपुर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और टैगोर परियोजना के संस्थापकों में से एक स्वपन मजूमदार ने बताया, "इस परियोजना को स्कूल ऑफ कल्चरल टेक्स्ट्स द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है। इसमें विद्वानों, चर्चित बंगाली लेखकों और जादवपुर विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के विद्यार्थियों का एक समूह शामिल है।"
मजूमदार ने कहा, "अभियांत्रिकी विभाग के विद्यार्थियों ने पांडुलिपियों को अपलोड करने के लिए सॉफ्टवेयर तैयार किया है। हमने टैगोर की 'मानसी' पर अभी काम शुरू ही किया है। इस ग्रंथ को बंगाली में अपलोड किया जाएगा। अगले वर्ष के अंत में हम 'गीतांजलि' का भी कंप्यूटरीकरण करेंगे। डिजीटल पुरालेख मुख्यरूप से अध्ययन एवं संदर्भगत उपयोग के लिए है।"
ज्ञात हो कि टैगोर को 'गीतांजलि' के लिए 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। यह उपलब्धि हासिल करने वाले वह पहले एशियाई व्यक्ति थे।
परियोजना सलाहकार शंखा घोष के अनुसार, "विश्व भारती भी जादवपुर विश्वविद्यालय के विद्वानों को दुर्लभ पांडुलिपियों तक पहुंच सुलभ कराकर उनकी मदद कर रहा है।"
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस परियोजना की प्रशंसा की है। उन्होंने कहा है कि उन्हें "ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक पुरालेख के सृजन के बारे में जानकर खासतौर से खुशी हुई है।"
स्कूल ऑफ कल्चरल टेक्स्ट्स की स्थापना 2003 में हुई थी। इस संस्था के पास विष्णु डे, शक्ति चट्टोपाध्याय, सुधींद्रनाथ दत्ता और बुद्धदेव बोस जैसे चर्चित बांग्ला कवियों, प्रकाशक रवि दयाल और सबल दासगुप्ता जैसे सामाजिक टिप्पणीकार और नाटककार बादल सरकार की कृतियों के पुरालेख व पत्र मौजूद हैं।
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